Wing Up

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Monday, 30 June 2014

मौनsoon

मानसून आ रहा है। शायद आपतक आ भी गया होगा। मानसून मुझे तो बड़ा पसंद है , गरमा गरम पकोड़े के साथ कॉफ़ी ( भाई मुझे कॉफ़ी ही पसंद है तो चाय कैसे लिख दूँ :) और ठंडे ठंड पानी में छत पर नहाना। हाँ बुरा बुरा भी लगता है कई बार जब किसी काम से आप बन ठन कर बाहर जाने वाले होते हो और नालायक बारिश की वजह से निकल नहीं पाते।
कुछ वक़्त बीतता है और आपको ये समझ आता है की यार ये  जो मानसून पर आपका प्यार है ये बड़ा ही मूडी है, जब मन होता है तो पसंद आ जाता है और नहीं तो "dude ! I hate monsoon".
लेकिन एक बात तो पक्की है या तो आप मानसून को पसंद करते हैं या नापसंद। कोई बीच की फीलिंग नहीं होती। लेकिन ज़रा रुकिए.. अगर आप भी मेरी तरह ऐसा ही सोचते हैं तो मै आपको एक ऐसी जगह ले जाना चाहता हूँ जहाँ लोगों का 'मानसून प्यार' मानसून पर ही नहीं, सरकार के "ग्रामीण सड़क निर्माण योजना" पर भी depend करता है।

हाँ मुझे पता है। आपके मुंह का स्वाद अचानक से कड़वा हो गया होगा। पहला तो "ग्रामीण" पढ़ कर और दूसरा सरकारी योजना का नाम सुन कर। घबराइए मत। मैं किसी fact पर आपको उपदेश नहीं देने वाला। बस एक छोटी सी और अजीब सी स्थिति से आपको रूबरू करवाना चाहता हूँ।
बिहार। जी हाँ बिहार का एक बड़ा हिस्सा है जो मानसून की वजह से हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाता है। लेकिन उनके चेहरे अभी भी कोई इशारा नहीं देते आपको। शायद इसलिए क्यूंकि उन्हें इसकी आदत है। या शायद इसलिए क्यूंकि उन्हें इसकी उम्मीद थी। शायद। बाढ़ आती है और कुछ दिनों में सब कुछ तबाह कर के चली जाती है।आप जो देखते हैं उससे आप थोड़ी सोच में पद जाते हैं। आप देखते हैं की पानी के कम होते ही लोग अपने घरो को दुरुस्त करने की बजाए सड़कों की तरफ जाते हैं और कुछ घरेलु औजारों से बचे हुए सड़क को पूरी तरह बिगाड़ देते हैं। अरे ये क्या बात हुई...उन्हें अपने घरों के उजड़ने से उतना गम क्यूँ नहीं है जितना की सामने से जाती सड़क के बिगड़ने से राहत ? ऐसा क्यूँ?
इसका जवाब आपको तब मिलता है जब आप इंसान की मूलभूत ज़रूरतों की महत्ता समझने की कोशिश करते हैं। बात ऐसी है की  बाढ़ ने तो उनकी जमा पूँजी का निपटारा तो कर ही दिया, और अब उनके पास जिंदगी की सबसे मूलभूत ज़रूरतों (basic needs) को पूरा करने का अगर कोई निवारण निकालता है तो वो होता है ये सड़क, जिसे बने रहने की जिम्मेदारी सरकार की ये "ग्रामीण सड़क निर्माण योजना" करती है। ये आस पास के मजदूरों को सड़क बनाने में इस्तेमाल करती है और इसके एवज में उन्हें दो वक़्त के बराबर के पैसे मिल जाते हैं। 
ये वो लोग है जिनके पास इस बात का जवाब नहीं होता की - ' मालिक मानसून आ रहा है, कैसा लग रहा है आपको '।

बुरा मत महसूस करिए। मेरा उद्देश्य कत्तई ये नहीं था। लेकिन अगर फिर भी आपको बुरा लग रहा है तो .. जनाब. आप अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।क्यूंकि ये ही वो पहली सोच है जो बदलाव ला सकती है। बदलाव समाज में, आपमें। क्यूंकि ये वो सोच है जो आपके शिकायत करने की आदत को कम कर सकती है। हर उस बात की शिकायत जो आपके मन मुताबिक़ नहीं है। क्यूंकि हम उन तमाम लोगों से बहुत अच्छी हालत में हैं जो अफ्रीका, युगांडा जैसी जगहों पर नहीं बल्कि हमारे देश के ही किसी कोने में हैं।
तो बस अगली बार जब बारिश हो तो जरा मुस्कुराइए,  उस कार वाले को गालियाँ मत दीजिये जिसने आपके कपडे ख़राब कर दिए ( अच्छा चलिए थोडा दे लीजिये :) और उस ठेले वाले पर भी अपना गुस्सा मत निकली जो बरसात में आपकी गाडी के सामने आकर खड़ा हो गया है और आपकी आराम सफ़र में रोड़ा बन रहा है और हाँ सबसे ज़रूरी बात अपनी जिंदगी को शुक्रिया कहना मत भूलियेगा जिसने आपको चुना। और जब भी आपको अपने "busy" schedule से मौका मिले, मानसून की वजह से बेघर हुए लोगों के लिए अगर आप कुछ कर सकते हों तो ज़रूर करिए। विश्वास मानिए आपको एक नई तरह की ख़ुशी का एहसास होगा। :)
उफ़... बारिश शुरू हो गई और मैंने अभी तक बाहर से कपडे भी नहीं उतारे.. आप समझ ही रहे होंगे ,मेरी दिक्कतें ही अलग है...फिर मिलता हूँ।
:)
Happy monsoon..

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