इस अगस्त इंडिया की नयी जनरेशन दो हिस्सों में बटी
हुई है. एक जिनकी प्रोफाइल पर तिरंगा लगा हुआ
है और दुसरे जो इस बात से चिढ़े हुए हैं
की "भाई ये ढकोसला क्या है".लेकिन इन दोनों की सोच
में कितनी भी असमानताएं क्यूँ ना हों एक चीज़
है जो इन्हें जोडती है. क्या है वो एक चीज़..?? बोलो बोलो ??
"यही की हम भारतीय है.".. जी हाँ
यही जवाब मिलता है आपसे और हमसे ...क्यूंकि यही जवाब हमको और आपको बचपन से रटाया जाता है.. और जैसे 'mass' और 'volume'
दिए जाने
पर आप बिना सवाल सुने
'density' निकाल कर चीख उठते थे, आज आपको एह्सास होता है की आप कुछ ज्यादा नहीं बदले. आज भी आप रिएक्शन पर एक्शन से ज्यादा यकीन करते
हैं. और जहाँ तक रहा मेरे सवाल(जो एक करोड़ के लिए पुछा जा रहा था ) के सही जवाब
का, तो वो ये है की इन दोनों तरह की जनरेशन को जोडती है इन दोनों के विचारों का खोखलापन (और इस तरह बड़ी ही बेदर्द तरीके से आप एक करोड़
रुपये हार जाते हैं).
अब दूसरा सवाल उठता है की क्या हम सभी
इस विचारहीनता के शिकार हैं (जी नहीं ये दो करोड़ का सवाल नहीं है...कृपया छिछोरापंथी ना करें ) ? इस तरह के सवालों का कोई
लिखित जवाब या निष्कर्ष नहीं होता..इसका जवाब हमारे और आपके रोज़मर्या की जिंदगी से निकल कर आता
है.
आज हम बड़े ही शान से कहते हैं की हम आज़ाद हैं
(अरे हाँ हाँ
... you random
citizen जिसके DP पर तिरंगा नहीं है तुम भी आज़ाद
हो )..लेकिन इस आज़ादी का मतलब क्या है और हमने इस आजादी के साथ क्या क्या अठखेलियाँ की हैं ये जानना उतना
ही ज़रूरी है हमारे लिए. एक बात तो बहुत ही साफ़ है की हम आज़ादी के वक़्त
में हुई कुर्बानियों को ना तो महसूस कर सकते हैं और ना ही उसकी
गहराई को भांप सकते हैं.और मुझे
आपको हमारे इतिहास में ले जाने का ही कोई इरादा भी नहीं
है (हम महानुभाव.. वर्तमान तो संभाल नहीं पा रहें हैं...इतिहास तो..टनन्न्नन्न..संभालेंगे ). लेकिन आज की जो हमारी आज़ादी है वो हमें तोहफे में बिना किसी मेहनत की मिली
है और इसे हम अपनी पुरानी गर्लफ्रेंड के दिए किसी तोहफे से ज्यादा संभाल कर नहीं रखते (oh yeah... here comes the trick).
15 तारीख को जिस आज़ादी को हम पूरी श्रधा से लहराते हुए चलते हैं उसी को 16 तारिख को जमीन से उठाने में हमारी कमर के साथ हमारी आज़ादी भी दम तोड़ देती है. अगर मैं आज आपको बता दूँ की इस बार इंडिपेंडेंस डे सन्डे को पड़ रहा है तो आपका मुंह उतर जाता है (अरे आप तो घबरा कर कैलेंडर देखने लग गए... बड़े कमज़ोर दिल के होगये हैं आप तो). आज विदेशी कंपनियां हमें इस "आज़ाद दिवस" के बदले बोनस देने की बात कहती हैं और हमें इस ऑफर में कोई बुरे नहीं नज़र आती. .... "अरे ये क्या बात हुई... आप ज़बरदस्ती इंडिपेंडेंस डे के पीछे पड़ गए हैं...ऐसा तो हम अपने त्यौहार के वक़्त भी करते हैं, तब क्यूँ नहीं ये देशभक्ति जैसे सवाल उठाये आपने?? " ... ज़नाब हम भी यही कहना चाह रहे हैं..की सवाल तो हमारी आज़ादी का कभी था ही नहीं...सवाल था तो ये की उस आज़ादी के साथ हम न्याय कर रहे हैं की नहीं.
आज़ादी आपका अधिकार है. जन्मसिद्ध अधिकार. लेकिन अपने अधिकारों के साथ उनसे जुड़े अपने कर्तव्यों को जानना और उनपर अमल करना भी उतना ही ज़रूरी है. (थोड़ी तबाही हिंदी हो गयी ना... )
आज जब हम
रोड के किनारे झंडे खरीदते हुए कुछ चिल्लर उन नन्हे हाथों पर रखते हैं तो देशभक्ति
की ये अंधी भावना हमें हमारी आजादी के भले ही करीब ले जाए लेकिन भारत के एक बड़े
हिस्से को आज भी आज़ादी के मायनों से कोसो दूर
रखती है.
आज जब हम अपने आजाद देश के किसी भी कोने में बेफिक्री से घुमते हुए थक कर
पास वाले चाय की दूकान पर बैठते हैं और "छोटू एक कप चाय इधर देना" कहते
हैं तो आपकी आज़ादी किसी मासूम की कोमल उँगलियों के बीच अटके कप की मोहताज हो जाती
है.
हमारे यहाँ की शादियों में जब सैकड़ों की तादाद में खाने फेंके जाते हैं तो हमारी आज़ादी सड़क उस पार तीन दिन से भूखा लाचार सा खड़ा दिखता है.
हमारे यहाँ की शादियों में जब सैकड़ों की तादाद में खाने फेंके जाते हैं तो हमारी आज़ादी सड़क उस पार तीन दिन से भूखा लाचार सा खड़ा दिखता है.
बड़े बड़े मॉल में हजारों के बिल को मुस्करा कर भर के जब आप रिक्शे से घर
लौट रहे होते हैं तो आपकी आज़ादी उस एक्स्ट्रा 5 रूपए में बंद हो जाती है जो आपने 15 मिनट की झड़प के बाद उस रिक्शेवाले से बचाए हैं.
हमारी देश की आज़ादी इन 67 सालों
में बस ऊपर के कुछ वर्गों तक ही पहुच सकी है. और अब ये हमारे हाथ में है की हम बची हूँ जनसँख्या के लिए
"साइमन" बन कर आते हैं या "भगत सिंह".ये हमारे ऊपर है की हम
अपनी आज़ादी को समाज को ऊपर लाने में इस्तेमाल करते हैं या सिर्फ खुद को. आज़ादी अपना अर्थ तब सही तरीके से लेगी जब
"छोटू" एक अच्छी चाय की जगह एक अच्छा समाज बना कर आपको देगा. जब आपके घर की खराब रोटी का किसी को इंतज़ार
नहीं होगा. जब आप किसी रिक्शे वाले
को रूपए देते हुए मुस्कुराएँगे. जब
आपको इंडिपेंडेंट महसूस करने के लिए किसी
इंडिपेंडेंस डे की ज़रुरत नहीं होगी.
लेकिन एक मिनट ..क्या मैंने ये पहले बताया की ये पोस्ट सिर्फ मर्दों के
लिए है. ये जो सारे आज़ादी पर लेक्चर है वो सिर्फ मर्दों पर लागू होते है (भले ही
थोड़े बहुत). इसका एक प्रतिशत भी हमारी देश की औरतों पर लागू नहीं होता. वो ना पहले आज़ाद थीं, ना आज हैं और ना हम
उन्हें कल भी होने देंगे. आप बेझिझक
अपनी नयी गाडी में झंडा लगा कर सामने जाती लड़की को छेड़ सकते हैं. ओह..गाडी नहीं है आपके पास...कोई
बात नहीं किसी लोकल बस और मेट्रो तो हैं ही. और घर पर अगर आप अपनी बीवी पर हाथ उठा
रहे हों तो थोडा बंद कमरे में मारिएगा, सुना है आजकल कुछ लोगों के नैतिक
मूल्यों को ठेस पहुच जाता है और वो सोशल नेटवर्क पर भूख हड़ताल कर देते हैं
(ब्वाहहहहाहा ..मज़ाक कर रहा हूँ , बेझिझक और बेपरवाह हाथ उठाइए ..ये तो अफ्रीका की
पेट भी like के सहारे भरते हैं).और
अगर कुछ ऊँचा नीचा हो भी जाता है तो बचपन में पिताजी ने बाहर मज़बूत टहनियों वाले
पेड़ तो लगवा ही रखे है..इस्तेमाल कर लेंगे..और कई राजनेता तो हमारे साथ हैं ही जो इसे "बच्चों की गलतियाँ"
साबित कर के बचा ही लेंगे. कोई
दिक्कत नहीं है भाई अपन को... एकदम
बिंदास एक अच्छे समाज के निर्माण में अपना योगदान दीजिये...अरे लड़कियां तुम कहाँ चल दी ..अन्दर जा कर खाना बनाने में मन
लगाओ...समाज सुधारना मर्दों का काम है..
मैं भी सोच रहा हूँ की एक सस्ता सा...मेरा मतलब है अच्छा सा तिरंगा ले आऊ.
स्वतंत्रा दिवस मुबारक हो.