असली सूरत दिखाऊ तो जिद्दी कहें सब,
तो क्या सबकी खुशी को ढोंगी हो जाऊ अब,
चेहरा अनेक देख के सोचता हुँ मैं भी कभी,
किसी ना किसी मोड़ क्यों टूट जाते हैं सभी...
तो क्या सबकी खुशी को ढोंगी हो जाऊ अब,
चेहरा अनेक देख के सोचता हुँ मैं भी कभी,
किसी ना किसी मोड़ क्यों टूट जाते हैं सभी...
इसी कश्मकश मे बडता चला गया हुँ मै,
अर्थ-खोज़ मे उडता चला गया हुँ मै,
नहीं सह सकता चाहे समझो कसूरवार जितना,
अपनी नज़रो मे उठा रहू क्या काफी है इतना...
जिद है मुझे और ख्वाईश भी है लडने की,
उम्मीद से भी ज़्यादा लत है झगडने की,
इस राह मे आए है ऐसे मुकाम कई मरतबा,
बन गया अटूट हिस्सा जिनका कोई न अर्थ था...
नहीं देख सकता अब ये नकली बनावटी लोग,
करतब करे अनेक पर मकसद सबका बस भोग,
बहोत हुआ अब बंद करो ये ढोंग स्वेत कृत्य का,
नादान नहीं सच्चे हैं वो जो टाल जाए ये छल ह्रदय का...
अर्थ-खोज़ मे उडता चला गया हुँ मै,
नहीं सह सकता चाहे समझो कसूरवार जितना,
अपनी नज़रो मे उठा रहू क्या काफी है इतना...
जिद है मुझे और ख्वाईश भी है लडने की,
उम्मीद से भी ज़्यादा लत है झगडने की,
इस राह मे आए है ऐसे मुकाम कई मरतबा,
बन गया अटूट हिस्सा जिनका कोई न अर्थ था...
नहीं देख सकता अब ये नकली बनावटी लोग,
करतब करे अनेक पर मकसद सबका बस भोग,
बहोत हुआ अब बंद करो ये ढोंग स्वेत कृत्य का,
नादान नहीं सच्चे हैं वो जो टाल जाए ये छल ह्रदय का...
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