Wing Up

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Wednesday, 2 July 2014

चटपटी लिस्ट

"भाईसाब!! सुना है DU की पहली cutoff लिस्ट आगई है? कितनी दर्दनाक थी इस बार की तबाही"
" नाही पूछें तो बेहतर है।"
"ऐसा क्या आगया है साहब"
"जितना टूथपेस्ट वाले अपने ऐड में कीटाणु मिटाने का वादा करते हैं उतनी तो ये अपनी cutoff निकालते हैं, आदमी बोले भी क्या"

इन परीक्षाओं का evolution हमारे evolution से थोडा ज्यादा ही हुआ है। पहले जो बाप अपने बड़े बेटे को 85% के लिए प्रोत्साहित करता था आज वो confuse है की छोटे बेटे को प्रोत्साहित करते हुए 95% तक जाए या 100% के लिए टार्चर करे।
जबतक परीक्षाए absolute परिणाम दिया करती थीं खुशियाँ थोड़ी absolute थीं। और जबसे परिणाम relative हुए.. खुशियाँ भी relative हो गईं हैं।( वैसे हों भी क्यूँ ना.. ये "relatives" जो बीच में आगये...just kidding )। विश्वास कीजिये पांच साल पहले बारहवीं पास किया था लेकिन गाली आज भी खाता हूँ जब दूसरों के रिजल्ट्स आते हैं की बेटा बड़े अच्छे वक़्त में पास कर लिया वरना आज के वक़्त में उतने नंबर में तो पड़ोस के झुमरीतलैया वाले कॉलेज में एडमिशन कराना पड़ता। बात सही भी है उनकी।
इस एजुकेशन सिस्टम को देखकर लगता है की इसे रिश्तेदारों के किसी ख़ुफ़िया तंत्र ने रात के अँधेरे में मिलकर बनाया है। लेकिन विश्वास मानिए हमारी बेसिक प्रॉब्लम एजुकेशन सिस्टम नहीं है बल्कि एक ही समय में मौजूद अलग अलग एजुकेशन सिस्टम है जो एक दुसरे से synchronise करने से ऐसे मुह फिरा रहे हैं जैसे एक घर में दो बहुएं एक दुसरे को देखकर मुह फिरा लेती हैं।
एक सिस्टम को ऐसा बनाया गया है की वो पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे ला सकें तो दुसरे को इस तरह से रूप दिया गया है की आगे बढ़ते हुए छात्रों को रास्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जा सके। अगर ये दोनों अपने मूलभूत उद्देश्यों को पूरा करने में सफल हो भी जाते हैं ( बस मानने को कह रहा हूँ भड़किये मत ) तो भी ये समान बुद्धिमता और योग्य छात्रों को एक ही platform पर लाकर नहीं खड़ा करते। और इस तरह हमारी एजुकेशन सिस्टम की असमता बरकरार रह जाती है।
वैसे inequality से याद आया, आपको कबसे इस असमता (या inequality) से दिक्कत होने लगी। आपको तो आदत है ना। ओह.. आपको तो याद ही नहीं। मैं याद दिलाता हूँ।
पिछली बार आपने उस रिक्शे वाले से, उस सब्जी वाले से, उस ऑटो वाले से, उस धोबी से, उस अखबार वाले से, उस फेरी वाले से किये गए अपने व्यवहार और उस बैंक मेनेजर से, उस डॉक्टर से, उस फ्लाइट attendent से, उस वकील से किये गए अपने व्यवहार पर जरा गौर करेंगे तो आपको खुद पता लग जाएगा की इस सिस्टम के आप उतने ही बड़े हिस्से हैं जितना आप दूसरों को मानते हैं। लेकिन ये बात ना आपको justify करता है और ना ही एजुकेशन सिस्टम को।

तो अगली बार अगर आपको किसी inequality पर गुस्सा आये तो जरा मार्केट में किसी ठेले वाले से दो किलो सब्जियां ले आइयेगा। और हां रिक्शे से जाना मत भूलियेगा।
:)

"भई ज़रा देखना तो... ये कल्मूहे दूसरी लिस्ट कब निकल रहे हैं।"

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