Wing Up

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Friday, 18 July 2014

सवाली ख़ुशी

स्टडी के हिसाब से एक चार साल का बच्चा दिन में करीब 400 बार हँसता है जबकि एक वयस्क (अगर आप ये पढ़ रहें हैं तो ज़नाब आप कम से कम वयस्क तो हैं ही ) करीब 15 बार . जी हाँ इसमें उस तरीका का भी हँसना है जिसे आप पागलों की तरह हँसना कहते हैं . आपके स्ट्रेस , आपका काम, आपकी priority, आप कारण कोई भी दें लेकिन ये सच है की आप हँसना भूल गए हैं.
पहले तो आप इस बात को मानते नहीं हैं. और जब मैं (पता नहीं क्यूँ ) आप पर थोडा जोर डालता हूँ तो कई बार आप किसी का नाम लेलेते हैं, किसी इंसान का, किसी चीज़ का, किसी घटना का, या कई बार "तुम नहीं समझोगे यार !!!" जैसी बुद्धिजीवियों वाले जवाब दे देते हैं.

मैंने बहोत लोगों से इस बारे में गुफ्तगुं की और मुझे बहुत से और बहुत ही अलग से (यकीन मानिए, कुछ तो यकीन ना करने की इन्तहां तक अजीब थे) कारण सुनने को मिले.

जो मैंने पाया वो ये था की हर किसी को किसी न किसी चीज़ या इंसान या कंडीशन से दिक्कत है. और वो उसके ना खुश होने का कारण है. लेकिन एक चीज़, एक कारण  जो सभी में एक जैसे थे,जिसे किसी ने नहीं कहा की ये उनके खुश ना होने का कारण है..और वो थे वो खुद.

एक इन्सान ने ये नहीं कहा की वो खुश नहीं हैं क्यूंकि वो खुद नहीं चाहता. वो इसलिए खुश नहीं है क्यूंकि वो उस जीव या निर्जीव से कुछ ज्यादा ही जुड़ गया है और आगे नहीं बढ़ रहा. वो इसलिए खुश नहीं है क्यूंकि उसने अपनी ख़ुशी खुद की जगह किसी तोते में बंद कर रखी है. वो तोता जो ना तो अब आपका है और ना ही आपके लिए.


लेकिन आप ये मानना नहीं चाहते, क्यूंकि आपक्को तो बस उस तोते से लगाव था. वो लगाव जो अब जिद्द बन गई है आपकी. जिद्द उसे वापस पाने की. और उस सवाल की , की कैसे आपका प्यारा तोता आपका नहीं है. आप अपनी जिद्द में इतने जकड जाते हैं की आपको इस सवाल के जवाब से अब मतलब नहीं होता..आपको बस ये सवाल पूछना होता है..ये सवाल जिसे सुनने वाला कोई नहीं होता और आप झुंझला जाते हैं और खुश होना आपको बेईमानी सी लगने लगती है. आपकी स्थिति एक गाडी के पीछे भागते कुत्ते की तरह हो जाती है (घबराइए नहीं मैं आपको कुत्ता नहीं कह रहा ) जो आती जाती हर गाडी के पीछे भागता तो है, लेकिन उसके रुकने के बाद समझ नहीं पाता की क्या करें. और वो ये बार बार करता है.

आप तबतक नहीं खुश रह रकते जबतक आप खुद को ये नहीं मानने पर मजबूर कर देते (मजबूर इसलिए क्यूंकि अबतक आप बात के भूत से लात के भूत में बदल चुके हैं ) की आप के पास ही आपकी ख़ुशी का राज़ है.. राज़ जो बहुत ही आसान है. आपको अपनी ख़ुशी किसी तोते के अन्दर नहीं रखनी है. उसे आपको खुद में संजोये रखना है. आपको ये समझना होगा की उस गाड़ी की रफ़्तार आपकी ख़ुशी पर नहीं टिकी है. फिर आप उस गाडी के पीछे (जी हाँ उस कुत्ते की तरह )क्यूँ भाग रहे हैं.

फिर कहीं से सवाल उठता है हम उस "ख़ुशी" (हाँ भाई ..जिसे हम अभी भी ख़ुशी मान रहे हैं) के पीछे जाना छोड़ भी देते हैं तो ससुरी इस बेरहम दुनियां में अगली ख़ुशी कहाँ से ढूंढ कर लाएं... इसका जवाब किसी बड़ी सी चीज़ में नहीं छुपा है. इसका जवाब तो उन सभी छोटी चीज़ों में है जिसपर हमने कभी ध्यान नहीं दिया.

हमारी ख़ुशी उस बेपरवाह ठहाकों में है जो अपने दोस्तों के साथ बेपरवाह लगाया करते थे.
हमारी ख़ुशी उन दो छिछोरी लाइनों में है जो किसी डायरी में दबी पड़ी है.
हमारी ख़ुशी उन सफ़ेद पन्नों के बेढंगे रंगों में है जो बक्से के एक कोने में बंद है.
हमारी ख़ुशी उन पुराने सिक्कों में है जो बचपन में इकठे करते हुए नए नोटों में सिमट गई है.
हमारी ख़ुशी उन घर की बनी मठरियों में है जो पिज़्ज़ा के खाली डब्बों के साथ घर के कोने में भरी पड़ी है.
हमारी खुशी उस खुली  छत पर है जिसे हम कमरों की आज़ादी में बंद कर आये हैं.
हमारी ख़ुशी उस चुक्कड़ की चाय में है जो hygiene के नाम पर प्लास्टिक के कपों में पड़ी है.
हमारी ख़ुशी हममें है जिसे हम दूसरों की आँखों में खोजते आए हैं.
हमारी ख़ुशी उन छोटी छोटी आदतों में है जिन्हें अपनी इच्छाओं के आड़ में बदल डाली है.
हमारी ख़ुशी इस सवाल में नहीं है की हम खुश क्यूँ नहीं हैं बल्कि इसके जवाब में है की हम पहले जितने खुश क्यूँ नहीं हैं...हमारी ख़ुशी किन्ही जवाबों में नहीं ..बल्कि उन सवालों में है जो हम खुद से करना नहीं चाहते...हमारी ख़ुशी हममे है...
 (आप तो थोड़े भावुक हो गए )

हाँ तो आप कुछ सवाल कर रहे थे!!! नहीं ?? कोई नहीं ?? अच्छा...अच्छा... वक़्त चाहिए आपको... जी हाँ ..लीजिये  लीजिये...वक़्त तो आपही का है.


Friday, 4 July 2014

केसरी side of wall

वैधानिक चेतावनी ~ राजनीतिक सासुमाएं कृपया इस पोस्ट को बहु की बनाई चाय समझ कर या तो पी जाएँ या टेबल पर ही रहने दें। पोस्ट को संसद ना बनायें।
केजरीवाल। अरविन्द केजरीवाल। ओह..मैं इसे बांड, जेम्स बांड जैसा sound करवाना चाह रहा था लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।वैसे ऐसा तो होना ही था। इसके दो कारण हैं..
पहला - जेम्स बांड एक काल्पनिक character है।
दूसरा - केजरीवाल को diabetes है।

अगर आपको ये लगता है की ये इंसान एक looser ( looser शब्द कुछ ज्यादा ही आम होगया है हम teenagers में ) है तो जरा खुद को इससे थोडा compare कर लीजिये। और अगर आप इसके थोड़े भी पास आजाते हैं तो ... आप शायद सही कह रहे हैं.
जब आप अपने 20s में friendzone जैसे शब्दों के उधेड़बून में लगे थे आपसे करीब 20-25 साल पहले इस इंसान ने सामजिक नियमों के उलट लव मैरेज जैसा जघन्य अपराध करने की गुस्ताखी की थी। इतना ही नहीं इसने अपने सामाजिक जीवन को व्यवहारिक और पारिवारिक जीवन पर पर असर भी नहीं डालने दिया ( जी नहीं मैंने उल्टा नहीं लिखा है) और इसका एक बड़ा प्रमाण आप इन्टरनेट पर फैले इसकी बेटी के बोर्ड्स और IIT के memes से आसानी से पा सकते हैं। इतना ही नहीं केजरीवाल और उनका परिवार उस उदाहरण का भी हिस्सा हैं जिसमे घर की औरत घर की जिम्मेदारियां लेती है ताकि मर्द अपने मन का काम ( भले ही वो समाज सेवा क्यूँ ना हो ) बिना किसी economic दबाव के कर सके। डरिये मत ... आपसे ऐसा करने को नहीं कह रहा हूँ क्यूंकि आपको भी पता है की आप  hypocrite हैं। और इसके बावजूद आप उनकी मनः स्थिति की गंभीरता , शालीनता और ठहराओ को उनके इंटरव्यूज में आसानी से परख सकते हैं।
ये तो कुछ ऐसी बातें थी जिनपर हमारा जवाब होता है- "अरे मौका हमें भी मिलेगा तो हम भी दिखा देंगे बड़े आये कटाक्ष करने ". लेकिन जनाब कुछ ऐसी भी खूबियाँ मैं गिना सकता हूँ जिससे शायद आपको अपने जवाब में थोड़ी तब्दीली ला सकें ( जवाब तो फिर भी आपके पास कोई ना कोई होगा ही)..
1. IIT में 1000 से कम रैंक। 
2. IAS में सफलता पाकर IRS के अंतर्गत joint commissioner इनकम टैक्स।
3. अपना NGO शुरू करके उसी डिपार्टमेंट में लोगो को घूस लेने से रोकना।
4. RTI जैसे नियमों को जनता के बीच लाकर सिस्टम में पारदर्शिता लाना और इस काम में अपने योगदान करनेके लिए Magsaysay जैसे पुरस्कारों से नवाजा जाना।
5. लोकपाल बिल को लागू करवाने के लिए सतही जोर लगाना जब की आपको पता है की पिछले चार दसक से येही कोशिश की जा रही है।
6. दिल्ली का cm बनना।
7. दो महीनों की तयारी में पंजाब जैसी जगह से चार MP's सामने लाना जिनका कोई राजनितिक इतिहास ना हो।

एक मिनट। शायद नीचे के दो points में मैं थोडा पोलिटिकल कमेन्ट कर बैठा।
8. ये पॉइंट सबसे ज़रूरी है । केजरीवाल नें हममे, जिसे हम youth कहते हैं में, राजनीती के प्रति थोड़ी उम्मीद जगाई। वो उम्मीद जो हमने दशकों पहले छोड़ दी थी। कल तक जो क्षेत्र सिर्फ गुंडों और दबंग लोगों का माना जारहा था आज आम जनता को अपनी बागडोर देने के लिए तैयार है। और आप MTV से थोडा वक़्त निकाल कर अगर न्यूज़ चैनल देखते हैं तो जनाब इसका थोडा तो श्रेय इस इंसान को जाता ही है।
ये सच है की उसने गलतियाँ की हैं जो उसे नहीं करनी चाहिए थी। ये भी सच है की उसने कुछ फैसले किये जो उसे नहीं करने चाहिए थे। ये भी सच है की उसने कई टारगेट्स बनाये जिसे छूने में वो असफल रहा। लेकिन उसके टारगेट्स steep थे। steep जिसे छू पाना आसान नहीं था। और ऐसे टारगेट्स एक achiever ही बना सकता था। इस इंसान की सफलताओं की लिस्ट असफलताओं से लम्बी है और पिक्चर अभी (बहुत) बाकी है मेरे दोस्त।
अगली बार जब आप लोकल ट्रेन में सफ़र करते हुए या BARISTA की कॉफ़ी का लुत्फ़ उठाते हुए भारत की राजनीतिक गुरुत्वाकर्षण पर अपने विचार प्रकट कर रहें हों तो उसे राजनीति तक ही केन्द्रित रखने की कोशिश करियेगा और अगर आपके पास फैक्ट्स कम पड़ गए हैं और आप पर्सनल होना भी चाहते हैं, तो एक बार ये पेज खोल लीजिएगा। शायद थोड़ी मदद मिले।
ps. अम्मा यार ...satire कौन ले गया रे इस पोस्ट का।

Wednesday, 2 July 2014

चटपटी लिस्ट

"भाईसाब!! सुना है DU की पहली cutoff लिस्ट आगई है? कितनी दर्दनाक थी इस बार की तबाही"
" नाही पूछें तो बेहतर है।"
"ऐसा क्या आगया है साहब"
"जितना टूथपेस्ट वाले अपने ऐड में कीटाणु मिटाने का वादा करते हैं उतनी तो ये अपनी cutoff निकालते हैं, आदमी बोले भी क्या"

इन परीक्षाओं का evolution हमारे evolution से थोडा ज्यादा ही हुआ है। पहले जो बाप अपने बड़े बेटे को 85% के लिए प्रोत्साहित करता था आज वो confuse है की छोटे बेटे को प्रोत्साहित करते हुए 95% तक जाए या 100% के लिए टार्चर करे।
जबतक परीक्षाए absolute परिणाम दिया करती थीं खुशियाँ थोड़ी absolute थीं। और जबसे परिणाम relative हुए.. खुशियाँ भी relative हो गईं हैं।( वैसे हों भी क्यूँ ना.. ये "relatives" जो बीच में आगये...just kidding )। विश्वास कीजिये पांच साल पहले बारहवीं पास किया था लेकिन गाली आज भी खाता हूँ जब दूसरों के रिजल्ट्स आते हैं की बेटा बड़े अच्छे वक़्त में पास कर लिया वरना आज के वक़्त में उतने नंबर में तो पड़ोस के झुमरीतलैया वाले कॉलेज में एडमिशन कराना पड़ता। बात सही भी है उनकी।
इस एजुकेशन सिस्टम को देखकर लगता है की इसे रिश्तेदारों के किसी ख़ुफ़िया तंत्र ने रात के अँधेरे में मिलकर बनाया है। लेकिन विश्वास मानिए हमारी बेसिक प्रॉब्लम एजुकेशन सिस्टम नहीं है बल्कि एक ही समय में मौजूद अलग अलग एजुकेशन सिस्टम है जो एक दुसरे से synchronise करने से ऐसे मुह फिरा रहे हैं जैसे एक घर में दो बहुएं एक दुसरे को देखकर मुह फिरा लेती हैं।
एक सिस्टम को ऐसा बनाया गया है की वो पिछड़े वर्ग के लोगों को आगे ला सकें तो दुसरे को इस तरह से रूप दिया गया है की आगे बढ़ते हुए छात्रों को रास्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पेश किया जा सके। अगर ये दोनों अपने मूलभूत उद्देश्यों को पूरा करने में सफल हो भी जाते हैं ( बस मानने को कह रहा हूँ भड़किये मत ) तो भी ये समान बुद्धिमता और योग्य छात्रों को एक ही platform पर लाकर नहीं खड़ा करते। और इस तरह हमारी एजुकेशन सिस्टम की असमता बरकरार रह जाती है।
वैसे inequality से याद आया, आपको कबसे इस असमता (या inequality) से दिक्कत होने लगी। आपको तो आदत है ना। ओह.. आपको तो याद ही नहीं। मैं याद दिलाता हूँ।
पिछली बार आपने उस रिक्शे वाले से, उस सब्जी वाले से, उस ऑटो वाले से, उस धोबी से, उस अखबार वाले से, उस फेरी वाले से किये गए अपने व्यवहार और उस बैंक मेनेजर से, उस डॉक्टर से, उस फ्लाइट attendent से, उस वकील से किये गए अपने व्यवहार पर जरा गौर करेंगे तो आपको खुद पता लग जाएगा की इस सिस्टम के आप उतने ही बड़े हिस्से हैं जितना आप दूसरों को मानते हैं। लेकिन ये बात ना आपको justify करता है और ना ही एजुकेशन सिस्टम को।

तो अगली बार अगर आपको किसी inequality पर गुस्सा आये तो जरा मार्केट में किसी ठेले वाले से दो किलो सब्जियां ले आइयेगा। और हां रिक्शे से जाना मत भूलियेगा।
:)

"भई ज़रा देखना तो... ये कल्मूहे दूसरी लिस्ट कब निकल रहे हैं।"

Tuesday, 1 July 2014

Some pearls..●●●

What life means is not something you stumble across, like the answer to a riddle or the prize in a treasure hunt. Meaning of life is something you build into your life out of your own past, out of your affections and loyalities, out of the experience of mankind as it is passed on to you, out of your own talent and understanding, out of the things you believe in, out of the values for which you are willing to sacrifice something.
So, ingredients are...
You are the only one who can put them together into that unique pattern that will be your life. Let it be a life that has dignity and meaning for you. If it does, then the particular balance of success or failure counts for little.
ps. Posted by WINGWOMAN :)