13. ये गिनती थी उन नर्सेज की जो उन 23 ICU मरीजों के बीच थीं. ये नंबर्स सुनने में जितने अजीब और बेढंगे थे उनसे
जुड़ा मेरा
experience उतना ही मजबूर और दिलचस्प था.
ये हॉस्पिटल है. और यहाँ सभी परेशान, दुखी, tensed और exhausted
हैं. जी हाँ .. एकदम वैसे ही जैसे
हम उम्मीद करते हैं. आप जागें हों या सोने की जुर्रत ही क्यूँ न कर
रहे हों आप उस सन्नाटे से डर जाते हैं जिसकी खोज आपको सुबह या कई दिनों से थी. आप
समझ नहीं रहे होते हैं की आप चाह क्या रहे हैं.
पहले दिन काफी भागमभाग और उतार चढ़ाव के व्यवहार के बाद आपका मन थोडा शांत
होता है. आप थक चुके होते हैं, शरीर से और मन से भी. अब आप अपने चारो तरफ देखते हैं और पाते हैं की आप पर ही सभी की नज़र टिकी
है. हर तरह की बेजान नज़रें.. शायद इतनी तरह की बेबसी जिसे खत्म करने के लिए शायद
हमारे पास जड़ी बूटियों की कमी पड़ जाएं. ये ऐसी जगह जान पड़ती है जहाँ आपकी दिक्कतें
सबसे कम जान पड़ती हैं... लेकिन इस
समय आप अपनी परेशानी को दूसरों से कम आंकने की स्थिति में नहीं हैं...आपको थोडा असहज सा लगता है, लेकिन आपकी गाडी
में इतनी जगह नहीं बची हुई है की आप उस असहजता के साथ सफ़र कर सकें. इससे बचने के लिए आप आँखें बंद करते हैं, इससे
आपको काम भर का 'भ्रम' मिल जाता है की कोई आपको देख नहीं रहा है.
अरे ... ये हंसने की
आवाज़ कहाँ से आपके कानों में पड़ी... वो भी इतनी तेज और बेबाक हंसी.. कौन है ये insensitive
इंसान, जिसे इतनी भी तमीज नहीं
की एक हॉस्पिटल में इंसान को कैसा बरताव करना चाहिए.. एक मिनट.. कहीं ऐसा तो नहीं की वो आपका मज़ाक बना रहा हो... हो भी सकता है, इंसान में इंसान की कमी तो आजकल होती ही जा रही है.
आप माथे
पर एक सिकन लिए हडबडा कर उस प्लास्टिक की कुर्सी से उठते हैं और इधर उधर देखने
लगते हैं. देखने लगते हैं की बस वो इंसान दिख जाए जिसने ऐसा किया और आप उससे इस
'जुर्रत' के लिए अपनी जबान गन्दी कर सकें.. आप इधर उधर थोड़ी देर देखते हैं लेकिन आपको वहां कुछ नर्स ( शायद कुछ से
थोड़ी ज्यादा ) और आपके जैसे ही आँखें फाड़े कुछ लोग और भी दिखते हैं जो अपने साथ
किसी अपने को लेकर यहाँ आये हुए हैं.
आपको ये
समझने में ज्यादा वक़्त नहीं लगता की ये ठहाके किसी और की नहीं बल्कि उन नर्सेज की
हैं जो आपने सामने ही झुण्ड बना खड़ी हैं. वो आपके सामने खड़ी हैं और एक दुसरे के कानों में धीरे बोलने की ना-के-बराबर कोशिश करते हुए उनके हाथ सर्कस के किसी कलाकार की तरह दवाइयां
छांटने और सिरिंज को बांटने में लगे हैं.
वो ऐसा
कैसे कर सकते हैं. जी नहीं !!! ये सवाल आपके सामने के करतब बाज के लिए नहीं है, ये
सवाल तो उस शख्स के लिए है जो आप पर शायद हंस रहा है. उस हंसोड़ के लिए है जो
भावनाविहीन मालूम होता है. आपको अब
उस इंसान से थोड़ी झुंझलाहट होने लगी है जो आपके यहाँ आने पर सबसे पहले आगे बढ़ कर
आया था और अपने ऊपर सारी जिम्मेदारियां लेकर इतनी शिद्दत के साथ लग गया था. और अब वही नामुराद ऐसे निरलज्यों की तरह ठहाके
लगा रहा है.
आप अभी
इसी उहापोह में ही थे की तभी वहां कहीं से एक लम्बे कद की औरत जो शक्ल से ही
चीफ-वार्डन लग रही थी आ जाती है.
उन्हें अन्दर आता देख सारी नुर्स एक साथ शांत हो गई... चलो उन्हें ये एहसास तो है की जो वो कर रही हैं वो सही नहीं है.. आप अन्दर से थोडा खुश होते हैं... अच्छा हुआ ये आ गई..अब या तो ये खुद उनकी ये हरकत देख लेगी या मैं खुद ही उनकी इस कारस्तानी
के बारे में बता दूंगा.
लेकिन ये क्या !!! सभी
उस चेइफ-वार्डन की तरह तेजी से बढ़ रही हैं..और इस बार तो उनकी आवाज के साथ साथ उनके चेहरों पर भी चमक है.. सभी ने
उनका हाथ पकड़ा और लगभग एक ही वक़्त में सभी के मुंह से निकला "गूड-मार्निंग-
दीदी". और उन्होंने भी सभी का मुस्कुरा कर अभिवादन किया..."गूड मोर्निंग
बहनों".. हाँ..यही शब्द हैं उनके. और इस बार उनकी
आवाज़ पूरे वार्ड में गूँज गई. गूंजती भी क्यूँ ना, उन्होंने सारे "गूड
मोर्निंग बहनों" को अपने अन्दर से descending-order में जो निकाला था.
आप अबतक
जितना annoyed महसूस कर रहे थे अब
उतना ही अजीब भी महसूस करने लगे हैं. आखिरकार ये लोग अपने काम के वक़्त ही तो गप्पें हांक रही थीं. लेकिन फिर
भी इनके अन्दर दूसरों को छोडिये अपने सीनियर का भी डर नहीं है. आप इस सवाल को मन में लिए अपनी कुर्सी के बगल
से लगे बेड पर पड़े हुए उस इंसान पर पड़ती है...आपको जो दिखता है वो एक सुकून भरा
सुखद-आश्चर्य होता है. जिस इंसान को
आप आधे घंटे पहले एक निर्जीव स्थिति में वहां लाये थे उसके चेहरे पर एक मुस्कान
थी. एक नायब मुस्कान जो डॉक्टरों की की गई भविष्यवाणी से काफी पहले आ गई थी. एक
मुस्कान जिसने आपके दिन भर के थकान को चुटकी में खत्म कर दिया था. लेकिन जरा ठेहेरिये ... उस मुस्कान का असली
श्रेय किसे जाएगा... डॉक्टरों को
...अच्छी दवाइयों को या किन्ही और को .... किन्ही फूहड़ औरतों को जिनको शायद भगवन
ने सबसे अच्छी हंसी से तो नहीं ही नवाजा है.
शायद
डॉक्टरों की भविष्यवाणी गलत इसलिए हो गई क्यूंकि उन्होंने दवाइयों की गिनती में
कुछ ठहाकों की संख्या में कमी कर दी थी. ठहाकों की वो संख्या जो उन नर्सों को याद
थीं और जिसे देने में उन्होंने कोई कंजूसी नहीं की. उस वक़्त शायद हमारे जैसे कई
मरीजों को दवाइयों से ज्यादा माहौल की ज़रुरत थी, कुछ मुस्कराहट की ज़रुरत थी. वो मुस्कराहट
जिसकी यहाँ आपसे उम्मीद नहीं की जाती. इन ठहाकों के लिए ना तो इन्हें
ट्रेनिंग दी जाती है और ना ही सैलरी. और
इसके बावजूद उन्होंने अपने काम को पूरे शिद्दत से पूरा किया... आपने शायद फैसला
करने में थोड़ी जल्दबाजी कर दी थी. लेकिन कोई बात नहीं ... अब आपकी बारी है... कुछ
गंभीरता में कटौती करने की .... कुछ अनजाने चेहरों पर अनचाही मुस्कान बिखेरने
की... कुछ बेपरवाह ठहाकों की... कुछ
दफा judgmental ना होने की... कुछ
दूसरों के काम को appreciate करने
की...कुछ खुद के काम से दूसरों को ख़ुशी देने की ... अब आपकी बारी है कुछ उमीदों पर खरा ना उतरने
की... कोशिश कीजिये... इतना मुश्किल भी नहीं है.
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