Wing Up

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Thursday, 15 August 2013

State of Independence

Independence day. एक ऐसा दिन जिसकी ख़ुशी हर एक भारतीय को होती है। कुछ को ज्यादा, कुछ को कम। कुछ अन्दर से खुश होते हैं तो कुछ बस दूसरों की ख़ुशी के लिए। कुछ इसे सुबह जल्दी जग कर मनाते हैं तो कुछ देर तक सो कर।
ख़ुशी हो भी क्यूँ ना, कम से कम एक दिन तो हमें मिलता है जिस दिन हम हर तरह से खुद को तस्सली दिला सकते हैं की भईया सच में हम आज़ाद हैं। वरना कहाँ इस बेरहम भाग दौड़ वाली जिंदगी में इस बात का एहसास हो पाता है। दिन भर देश के एक बड़े शहर के छोटे से कोने में बहोत ही तेजी से पूरी दुनिया से जोड़े रखने वाली मशीन के सामने बैठे रहने पर , कहाँ इस आज़ादी का लुत्फ़ उठा मिलता है।
इसमें कुछ गलत नहीं है। हमें पूरा हक है की हम जैसे चाहें वैसे अपनी स्वतंत्रता को enjoy  करें। बात बस इतनी सी है की क्या हमें पता है की हमें अपनी स्वतंत्रता का इस्तेमाल कैसे करना है या हम कैसे कर सकते हैं और फिर भी नहीं करते। हम आज भी इंतज़ार करते हैं की कोई आकर हमारी बात आगे रखे। कोई आए जो हमारी दिक्कतों और परेशानियों का solution ढूंढें। हमें कुछ बोलने, कुछ चित्रित करने,कुछ सोचने से पहले भी इस बात का डर होता है की कहीं ये  system हमारे सभी भावनाओं को दबा ना दें। सिर्फ इसी इसी डर से हम अपनी बची खुची इच्छाएँ भी दबा देते हैं। हम भूल जाते हैं की इस व्यवस्था की एक एक कड़ी हमारी चुनी हुई है। इसकी एक एक नीव हमारी मजबूती और योगदान को दिखाती है न की हमारी कमजोरी और असहाय हालत को।
हम भूल गए हैं की हमने ये कही सुनी आज़ादी कैसे, किन मुश्किलों में पाई है। इसमें हमारी कोई गलती नहीं है। हमें आज़ादी मिली ही उपहार में है। हमने कहाँ किसी नेहरु गाँधी को सुना है। हम तो ना थे 1947 की उस पाकिस्तान से आने वाली ट्रेन में जिसमे सैकड़ो लोग मारे गए थे। उन दंगो में हमारे मकान और दुकानें नहीं जलाई गई थी।
भईया.. उपहार तो हमें आज भी बखूबी याद है, बस उपहार देने वालों को भूल गए हैं। ज्यादा नहीं बस थोडा सा। और उपहार की कीमत थोड़ी पूछी जाती है देने वालों से. सो हमने भी कभी ये जानने की गुस्ताखी ना की। इसमें गलत तो कुछ ना था।
हमारे ऐसे होने का एक बड़ा कारण ये है की हम आज़ादी संभाल नहीं पा रहे हैं। लेकिन ये बात हम कभी नहीं मानेंगे। हम कभी नहीं मानेंगे की हम आज भी अंदर से गुलाम है। गुलाम अपने ही लोगों के हाथों। अपनी ही भावनाओं के हाथो। हम आज अपने सपनो के पीछे नहीं भागते। हम किसी और के पीछे भागते हैं जो किसी और के पीछे भागता है उसके सपने पूरे करने के लिए। क्यूंकि हम अपने पसंद का काम सिर्फ इसलिए नहीं करते क्यूंकि किसी अनजान बन्दे ने हमसे कभी कह दिया था की ये काम बेकार है, या सामाजिक रूप से तिरस्कृत। ये वही लोग होते हैं जो समाज में समानता की बात करते हैं। क्यूंकि हम उसी भीड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं जिसे पता भी नहीं की उन्हें चाहिए क्या। जो रोज सुबह जगता है और हफ्ते के पांच दिन किसी और देश की दिक्कतों और समस्यायों  को एक फ़ोन पर सुलझाता है।
हम अपनी ताकत भूल रहे हैं। हमे इस बात का एकसास नहीं है की जो इंसान फोन पर दुसरे मुल्क की दिक्कतों का निवारण कर रहा है वो व्यक्तिगत रूप से इस देश की तरक्की में कितना योगदान दे सकता है।
हमें देश की तरक्की में अपनी हिस्सेदारी पहचानने की ज़रुरत है। और इसमें अपना योगदान देने की भी। हमे खुद को इस बात का एहसास करवाने की ज़रुरत है की संवैधानिक, सामाजिक और मानसिक स्वतंत्रता में क्या अंतर है। और इन तीनो के बिना किस तरह से हमारी आजादी बस नाम मात्र है।
dependent होकर अपने आप को indepentent कहना और अपने ही जैसे दुसरे dependents को इस भ्रम में रखना मुझे नहीं लगता हमारे लिए ज्यादा हितकर होगा।
दो स्वतंत्रताएं तो शायद हमें हमारे पूर्वजों ने दे दी है। बाकी सिर्फ मानसिक स्वतंत्रता है। उम्मीद करूंगा हमें जल्द ही वो भी हासिल हो। आमीन।।
Happy brthday independents...

5 comments:

  1. विवेचनात्मक शैली का एक बढ़िया उदाहरण...freedom is state of mind...
    ;)

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  2. I completely agree with you.
    Well thought N Written..as Expected :-) Keep It Up

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  3. kahne ko ham independent ho gaye h... vaise hi jaise sarkaari files me colonied and roads bana di jaati h.

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  4. phir bhi dil hai hindustaani !
    jai hind :D

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  5. i know its state of mind but i like this state
    looking forward for new post

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