आज़ादी के वक़्त जब हमारे economists ने हमारे देश में
समानता की बात की थी तब उनकी इच्छा हमारे देश में अमीरों को सडको पर लाना नहीं था. वो बस इतना चाहते थे की हमारे देश की कमज़ोर और ग़रीब जनता अपने जीवानसैली में
थोड़ी बढ़ोत्तरी लाए.
चलिए एक बहोत ही उलटी situation
imagine करते हैं. एक ऐसा देश जहाँ अमीर और
अमीर हो रहे हैं और ग़रीब और ग़रीब. यही एकलौती सबसे बड़ी चिंता थी हमारे देश में आने
वाले समय में.
रुकिए रुकिए ..कहाँ
भागे जा रहे हैं आप... मैं कोई economics का lecture
नहीं देने वाला आपको. बस मैं एक बहोत ही छोटी सी बात share करना चाहता हूँ जो अचानक से आज मेरे जेहन में तब आई जब मैं अपनी कार में
पेट्रोल भरवाते हुए रोड के किनारे एक भिखारी को प्याज़ खाते देखा. क्या सच में वो
गरीब था या किसी राज्य का राजा जो ख़ुफ़िया तरह से अपने राज्य के लोगों को जांचने
आया है. जी हाँ मजाक ही कर रहा हूँ.
इस वक़्त हमारे देश में इन दोनों से भी अलग situation आ गई है. जरा सोचिए. आज ना तो कोई अमीर और अमीर बनने लायक बचा है और ना ही कोई ग़रीब
और ग़रीब. अरे मैं बस इमानदार अमीरों की बात कर रहा हूँ. और
ग़रीब..common...वो 5
रूपए में अपना पेट भर तो रहे हैं अब क्या जान लोगे उनकी.
वैसे जरा situation समझिए. हमारे पास आज सभी चीजें एक दाम पर मिल रही हैं. प्याज़, पेट्रोल, दारु.
प्याज़ - आपनी जमीनी
ज़रुरत
पेट्रोल - आपके आराम
का सामान
दारु - आपके ऐयाशियों
का सामान
अब आप समझ सकते हैं की
ये economists
आपसे चीख चीख कर जो कहना चाह रहे हैं. जी हाँ!!! अब आपके
समझ में आया ना. या तो आप अपना बहुमूल्य पैसा अपने ऐयाशियों में उडाएं, अपने आराम की जिंदगी जिसका आपने सपना देखा था उसमे उडाएं या
फिर अपनी जिंदगी की सतही ज़रूरतों में उड़ाते उड़ाते निपट ही जाएं आप.
ये आपको हर माल 10 रूपए जैसा लग सकता है. लेकिन विश्वास करिए ये ही आज का समानता का उद्देश्य रह
गया है.
आज हम डॉलरों की बात
करते हैं...आज 62
रूपए कल 64.5.. मैं कहता हूँ फालतू की mathematics में पड़े हो दोस्त, ज़रा पाउंड्स पे नज़र तो
दौडाओ वो तो हमारे mathematics की सारी झोल को खत्म करने में
लगा है. हाँ भाई 100
रूपए को एक पाउंड में बदलना 85 रूपए
को बदलने से कहीं ज्यादा कम सर दर्द का काम है.
मेरे कुछ दोस्त आज से
कुछ साल पहले UK
shift हुए थे. आज उनकी जॉब की salary में भले ही कोई बढ़ोत्तरी न हुई हो लेकिन जब मैं यहाँ से देखता हूँ तो उनकी मासिक
आय लगभग 20% बढ़ी हुई दिखती है...आपको नहीं दिख रहा है क्या. मुझे विश्वाश है की जिस दिन आपको दिखेगा आपका विश्वास Brain-Drain जैसे imaginary
शब्दों से उठ जाएगा.
अब समाज के बड़े बड़े
विचारक इस imaginary
concept पर कोई comment क्यूँ नहीं करते.
कल मेरे एक दोस्त से
बेहेस हो गई. उसने कहा की क्यूँ हम पिछले कुछ दिनों से सारा काम छोड़कर इस बढती
" रूपए की इज्ज़त " पर ही लम्बी लम्बी कहानियां गढ़ रहे हैं. क्या इससे प्याज़ की कीमतों में कमी आएगी या फिर डॉलर की कीमत में कोई कमी. उसका कहना मुझे कहीं से भी गलत नहीं लगा.
आज भी हमारे देश की 80% जनता " क्यूं " जैसे सवालों से अपना पेट नहीं भर्ती. उसे आज भी
अपनी जिन्दगी चलाने के लिए " क्या और
कैसे " जैसे सवालों से जूझना पड़ता है. और
अगर उसने इस सवाल का जवाब जैसे तैसे दे भी दिया फिर भी " क्यूँ " जैसे
सवाल के जवाब देने की ना तो हमने शिक्षा दी है और ना ही अधिकार.
अरे मैं कोई बड़ी बातें
नहीं कर रहा. मुझे आज बुरा बस ये लगा की आज mess में मुझे सलाद में प्याज नहीं दिखे. मैं सलाद में प्याज के ना होने पर जब इतना
कुछ कह सकता हूँ अपनी भड़ास निकाल सकता हूँ , तो ज़रा उनका सोचिए जो खाने की प्लेट से एकलौते प्याज़ के चले जाने पर भी कुछ
नहीं कह सकते, अपनी भड़ास नहीं निकाल सकते. यकीन मानिए आप ग़रीब नहीं हैं.
yaar seriously, "kyu" ka jawaab jinhe dena chahiye wo khud chup baithe hain. fir hmari kya aukaat hai. we can just afford to care enough for "kya" nd "kaise"..awesome!!
ReplyDelete-Rajat
इस क्यूँ का जवाब तब तक नहीं मिलेगा जब तक समाज के ठेकेदारों की थाली में प्याज परोसी जाती रहेगी...बस निर्भर हमपे करता है कि हम कब उन्हें actually एहसास करा पाते हैं..इन्तेजार रहेगा उस दिन का..
ReplyDeleteProblem is not this guys. Problem lie somewhere deep within us. Inaction/Dormancy of capable ones makes the difference. I wonder how many of this e-age youth participate actively in elections/voting. only bragging on some e page will result you more options and time to do so electronically. People pointing fingers on corrupt ones forget that 3 fingers pointing back to them. In last i say Silence of right is disastrous not the wrong ones.
ReplyDeleteEk pyaj ne tmse itna bada blog likhwa diya...sahi h but jo b likha h ekdam 16 aane sach likha hai :-D
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