21 वीं सदी है ये या शायद 22 वीं।क्या फर्क पड़ता है। इसे हम आज का जमाना कहते हैं। और हम हैं आज के इंसान। हाँ भाई, हों भी क्यूँ ना, कल का इंसान तो कहीं ऑफिस में या तो किसी पर चिल्ला रहा होगा या किसी की सुन रहा होगा। लेकिन हमें इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। हम शान्ति प्रिय इंसान हैं। शाम को जब वो थका मांदा इंसान घर लौटेगा तब ही निपटेंगे उससे। आपने भी ना, पता नहीं किस बेतुकी बात में ऊलझा दिया मुझे। मैं बात कर रहा हूँ - इस जमाने की। ना ना ना ..धोखा मत खाइये , जब मैंने कहा इस ज़माने की तो मेरा मतलब था सिर्फ इस जमाने की। मुझे न तो अपने भूत से कोई शिकायत है और ना की अपने भविष्य की चिंता। तो हम सिर्फ हमारी बात करेंगे।
मैं मल्होत्रा जी के यहाँ आज 21 साल के एक मित्र से मिला। मल्होत्रा जी हमारे पडोसी हैं। असल में "मल्होत्रा" सबसे ज्यादा बिकने वाला हेल्दी सा सरनेम है , इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूँ। चलिए टॉपिक से भटकते नहीं हैं। तो मैं इस शख्स से मिला। ज्यादा खुश नहीं लग रहा था। मैं उससे कारण पूछ ही लेता अगर उसकी शक्ल उन ढाई घंटो में लैपटॉप से हटकर एक बार भी इधर उधर गई होती। मैं शिकारी की तरह महसूस कर रहा था जो शिकार की ताक में घात लगे बैठा था। मेरे दिमाग में चल रहा था की हो सकता है इसे भी राजनीतिक उथलपुथल की भनक लग गई होगी और ये अपने विचारो के गहमा गहमी में अपने सामने पिछले ढाई घंटे से बैठे भीमकाए शरीर को ना देख पा रहा हो ( जनाब ये मैं अपने आपको संबोधित कर रहा हूँ, इतनी तो आजादी है ना ) फिर दूसरा विचार आया की नहीं यार हो सकता है की अंतररास्ट्रीय ख़बरों का शौक़ीन हो .. अब दुनिया इतनी बड़ी है , उसके बारे में जानने में इतना वक़्त देना तो बनता है। लेकिन अभी भी उसका सडा सा चेहरा मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। तभी उसके लैपटॉप से एक बीप की आवाज आई और ये मेरे नए मित्र कुछ बडबडाते हुए चार्जर की ऒर बढ़ी। मैंने सोचा अच्छा मौका है। मैंने झट से पहला सवाल दागा " परेशान हो??"
कुछ वक़्त की मिन्नतों के बाद जो बात पता चली उसने मेरे सोचने के नजरिए को थोडा बदल दिया। ऐसा नहीं है की मुझे परम सत्य की प्राप्ति हुई, बस कुछ बदल गया! और आप , आप तो जब सुनेंगे तो सोचेंगे की ये इंसान पागल हो गया है, इस आम सी बात का ये बतंगड़ बना रहा है।
ब्रेकअप!!! हाँ .. ये जनाब जो की मल्होत्रा जी के सबसे बड़े सुपुत्र हैं, वे पिछले ढाई घंटे से किसी अंतररास्ट्रीय खबर या राजनितिक मुद्दे को लेकर नहीं, अपनी जिंदगी में चल रहे भावनात्मक पहलू को लेकर परेशान हैं। अरे आपको तो हंसी आ रही है। मुझे पता है की आप मेरी मुर्खता पर हंस रहे हैं की मैं इस छोटी सी बात को इतने जोर देकर क्यों पेश कर रहा हूँ।
बात सिर्फ भावनात्मक पहलु की नहीं है बात है नैतिक मूल्यों और अपनी जिम्मेदारियों की। आज का युवा ठंड में रजाई में दुबक कर बहोत ही आसानी से चाय की चुस्कियां लेते हुए फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सारे ज्वलनशील मुद्दों पर अपनी राय दे रहा है। एक तरह से देखा जाए तो ये अच्छी बात है। कम से कम उसे देश और विदेश की कुछ खबर तो है। मेरा सवाल सिर्फ इतना है क्या यह राय आपके खुद की बनाई हुई है ?? कहीं आप भेड़चाल का हिस्सा तो नहीं। क्यूंकि अपनी राय बनाने की लिए हमें थोडा वक़्त तो उस मुद्दे की सभी पहलु को देखने में देना ही होगा। और इतना वक़्त तो है ही नहीं हमारे पास। जो भी वक़्त पढाई ( मैं इसे भी काम मान ही लेता हूँ ) और दोस्तों से मिलने मिलाने के बाद मिलता है वो फेसबुक पर इन्वेस्ट ( इन्वेस्ट की जगह बर्बाद लिखना मुझे भारी पड़ सकता था ) हो जाता है।
मैंने अपने हॉस्टल के एक मित्र से पुछा तो उसने कहा - मालिक दो मिनट की मैगी बनाने की तो फुर्सत नहीं है दुनिया भर के चोचलों पर राय कहाँ से बनाता फिरूं। मैंने सोचा कह भी तो सही रहा है, अपने 723 दोस्त, जो फेसबुक पर हैं उनकी समस्याएँ क्या कम हैं सुलझाने को जो साउथ अफ्रीका के किसी दुरस्त गाँव में भूख से मर रहे लोगों क बारे में चिंता करूँ। वो कौन सा मेरे ताऊ के लड़के हैं। और जितना मेरे आतंरिक शांति की बात है, वो मैंने एक पेज को लिखे कर के पा ली है। नहीं नहीं ..सच में . उसपर एक अजीब से गंदे बच्चे की तस्वीर थी ( मुझे तो लग रहा है की photoshop की हुई थी ) और लिखा भी था की मैं जितना लाइक करूँगा उतने पैसे उस बच्चे को दिए जाएँगे .. और मैंने फटाफट लाइक्स भी ठोके थे। अब इससे ज्यादा मैं कर भी क्या सकत हूँ। बेचारा जो हूँ।
अरे .आपने तो मुझे सच में बेचारा समझ लिया। आपने तो विदेशों की बात छेड़ दी इसलिए मैं फ़ैल नहीं पाया। अपने देश की बात करिए तो बताऊँ। अभी जो दिल्ली और देश के दुसरे कोनों में जो घटनाए हुई हैं ( असल में देश के दुसरे तबकों के बारे में ज्यादा नहीं पता है मुझे लेकिन फिर भी ) मैंने उसपर बहोत बहस की है , मुझसे ज्यादा पुलिस और नेताओं को किसी ने नहीं गालियाँ दी होंगी। आप चाहें तो चेक कर लें। बात करते हैं की हम सजग नहीं हैं। जाइए जनाब अपना काम करिए चैट पर कई मित्र मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।
मैं मल्होत्रा जी के यहाँ आज 21 साल के एक मित्र से मिला। मल्होत्रा जी हमारे पडोसी हैं। असल में "मल्होत्रा" सबसे ज्यादा बिकने वाला हेल्दी सा सरनेम है , इसलिए इस्तेमाल कर रहा हूँ। चलिए टॉपिक से भटकते नहीं हैं। तो मैं इस शख्स से मिला। ज्यादा खुश नहीं लग रहा था। मैं उससे कारण पूछ ही लेता अगर उसकी शक्ल उन ढाई घंटो में लैपटॉप से हटकर एक बार भी इधर उधर गई होती। मैं शिकारी की तरह महसूस कर रहा था जो शिकार की ताक में घात लगे बैठा था। मेरे दिमाग में चल रहा था की हो सकता है इसे भी राजनीतिक उथलपुथल की भनक लग गई होगी और ये अपने विचारो के गहमा गहमी में अपने सामने पिछले ढाई घंटे से बैठे भीमकाए शरीर को ना देख पा रहा हो ( जनाब ये मैं अपने आपको संबोधित कर रहा हूँ, इतनी तो आजादी है ना ) फिर दूसरा विचार आया की नहीं यार हो सकता है की अंतररास्ट्रीय ख़बरों का शौक़ीन हो .. अब दुनिया इतनी बड़ी है , उसके बारे में जानने में इतना वक़्त देना तो बनता है। लेकिन अभी भी उसका सडा सा चेहरा मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। तभी उसके लैपटॉप से एक बीप की आवाज आई और ये मेरे नए मित्र कुछ बडबडाते हुए चार्जर की ऒर बढ़ी। मैंने सोचा अच्छा मौका है। मैंने झट से पहला सवाल दागा " परेशान हो??"
कुछ वक़्त की मिन्नतों के बाद जो बात पता चली उसने मेरे सोचने के नजरिए को थोडा बदल दिया। ऐसा नहीं है की मुझे परम सत्य की प्राप्ति हुई, बस कुछ बदल गया! और आप , आप तो जब सुनेंगे तो सोचेंगे की ये इंसान पागल हो गया है, इस आम सी बात का ये बतंगड़ बना रहा है।
ब्रेकअप!!! हाँ .. ये जनाब जो की मल्होत्रा जी के सबसे बड़े सुपुत्र हैं, वे पिछले ढाई घंटे से किसी अंतररास्ट्रीय खबर या राजनितिक मुद्दे को लेकर नहीं, अपनी जिंदगी में चल रहे भावनात्मक पहलू को लेकर परेशान हैं। अरे आपको तो हंसी आ रही है। मुझे पता है की आप मेरी मुर्खता पर हंस रहे हैं की मैं इस छोटी सी बात को इतने जोर देकर क्यों पेश कर रहा हूँ।
बात सिर्फ भावनात्मक पहलु की नहीं है बात है नैतिक मूल्यों और अपनी जिम्मेदारियों की। आज का युवा ठंड में रजाई में दुबक कर बहोत ही आसानी से चाय की चुस्कियां लेते हुए फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सारे ज्वलनशील मुद्दों पर अपनी राय दे रहा है। एक तरह से देखा जाए तो ये अच्छी बात है। कम से कम उसे देश और विदेश की कुछ खबर तो है। मेरा सवाल सिर्फ इतना है क्या यह राय आपके खुद की बनाई हुई है ?? कहीं आप भेड़चाल का हिस्सा तो नहीं। क्यूंकि अपनी राय बनाने की लिए हमें थोडा वक़्त तो उस मुद्दे की सभी पहलु को देखने में देना ही होगा। और इतना वक़्त तो है ही नहीं हमारे पास। जो भी वक़्त पढाई ( मैं इसे भी काम मान ही लेता हूँ ) और दोस्तों से मिलने मिलाने के बाद मिलता है वो फेसबुक पर इन्वेस्ट ( इन्वेस्ट की जगह बर्बाद लिखना मुझे भारी पड़ सकता था ) हो जाता है।
मैंने अपने हॉस्टल के एक मित्र से पुछा तो उसने कहा - मालिक दो मिनट की मैगी बनाने की तो फुर्सत नहीं है दुनिया भर के चोचलों पर राय कहाँ से बनाता फिरूं। मैंने सोचा कह भी तो सही रहा है, अपने 723 दोस्त, जो फेसबुक पर हैं उनकी समस्याएँ क्या कम हैं सुलझाने को जो साउथ अफ्रीका के किसी दुरस्त गाँव में भूख से मर रहे लोगों क बारे में चिंता करूँ। वो कौन सा मेरे ताऊ के लड़के हैं। और जितना मेरे आतंरिक शांति की बात है, वो मैंने एक पेज को लिखे कर के पा ली है। नहीं नहीं ..सच में . उसपर एक अजीब से गंदे बच्चे की तस्वीर थी ( मुझे तो लग रहा है की photoshop की हुई थी ) और लिखा भी था की मैं जितना लाइक करूँगा उतने पैसे उस बच्चे को दिए जाएँगे .. और मैंने फटाफट लाइक्स भी ठोके थे। अब इससे ज्यादा मैं कर भी क्या सकत हूँ। बेचारा जो हूँ।
अरे .आपने तो मुझे सच में बेचारा समझ लिया। आपने तो विदेशों की बात छेड़ दी इसलिए मैं फ़ैल नहीं पाया। अपने देश की बात करिए तो बताऊँ। अभी जो दिल्ली और देश के दुसरे कोनों में जो घटनाए हुई हैं ( असल में देश के दुसरे तबकों के बारे में ज्यादा नहीं पता है मुझे लेकिन फिर भी ) मैंने उसपर बहोत बहस की है , मुझसे ज्यादा पुलिस और नेताओं को किसी ने नहीं गालियाँ दी होंगी। आप चाहें तो चेक कर लें। बात करते हैं की हम सजग नहीं हैं। जाइए जनाब अपना काम करिए चैट पर कई मित्र मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे।
its awsome...dis 1 i enjyd more.keep it up..:-)
ReplyDeletenice going...
ReplyDeletegood one..... specially 'TAU JI KE LADKE'
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