रोज़ की
तरह आज भी सुबह 6 बजे अलार्म की
आवाज़ ने मुर्गे का काम आसान करते हुए मुझे हौले से जगाया. हाँ सच में. और कसम से
गुस्सा तो मुझे आया ही नहीं. आता भी क्यूँ रोज़ का काम है उस बेचारे का. मैं बस उठा
और "बहोत ही अच्छे मन से" बाथरूम की ओर तेज़ी से बढ़ा. मुझे अगर कोई सुबह
सुबह बाथरूम की ओर भागता देख लेता तो उसे कारगिल पर सीमा की ओर भागते सैनिक की याद
ज़रूर आ जाती.
लेकिन
आज कुछ अलग हुआ. मैं बाथरूम तक नहीं
पंहुच पाया. मेरे कदम बाहर से आ रही
एक छोटी सी किरण ने रोक दी. एक छोटी सी रौशनी जो खिड़की के कोने से सीधे मेरे table पर आरही थी. मैंने अपने अन्दर के भाई-देर-हो-रही-है वाले इंसान को थोडा
आराम दिया और खिड़की की ओर बढ़ा.
खिड़की खुलते ही एक ठंढा सा हवा का झोंका मेरे चेहरे पर पड़ा. ना बहोत खुश्क और ना ही नम, एकदम नपा तुला, सौंधी महक लिए वो ठंढा झोंका जो
सूरज की चमक और गर्मी में मिलकर एक अलग सा एह्साह दे रहा था, सीधे मेरे चेहरे पर
पड़ रहा था. मैंने आँखें बंद की और
उस नए से एहसास से खुद को वाकिफ कराने लगा.
लेकिन
एक मिनट ....ये एहसास, ये सुकून, ये हवा कुछ जानी पहचानी सी लगी... कुछ अपनापन
लिए.. किसी पुराने दोस्त की तरह. एक ऐसा एहसास जिसकी आगोश में आकर कोई परेशानी,
कोई मुश्किल बस एक अफवाह से ज्यादा होने की जुर्रत नहीं करते. मेरे कानों में एक
आवाज़ पड़ी - 'भाई !!! जल्दी उठ, सन्डे हैं, सात बज गए हैं, "रंगोली" के
गाने छोड़ने का सोचा है क्या.' मेरी आँख एक ही आवाज़ में खुली और दो मिनट से कम वक़्त
में मैं टीवी के सामने आँख फाड़े बैठा था. और पांच मिनट में मेरे सामने मेरे-सन्डे स्पेशल ब्रेड रोल और चाय थे. और
पीछे से चिल्लाती माँ की आवाज़ " ठंड शुरू हो गई है कम्बल में घुसो ". उस
कम्बल की गर्मी में calories और cholesterol वाले ब्रेड रोल का लुत्फ़, किशोर और
मुकेश के पुराने गाने सुनते हुए लेने के बाद बारी थी सारे गमलों को पानी देने की.
विश्वास करिए उन गमलों में रोबिन-हुड से लेकर गुलिवर तक की कहानियों के सेट बन
चुके होते थे. ये कहानियां तब तक चलती रहतीं जबतक रोबिन-हुड और गुलिवर के बीच झगडे न शुरू हो जाते और माँ उनकी जगह हमारे पीछे
झाड़ू लेकर भागती नज़र ना आने लगतीं. वैसे ये हाल कैरेम और लूडो के घंटों चलते matches के बाद भी देखने को मिल जाते थे जब नियम
बनाते भी हम ही थे और तोड़ते भी.
मोहल्ले में हो रहे क्रिकेट टूर्नामेंट में आप तभी जा सकते थे जब माँ किसी काम में
इतनी व्यस्त हों की आप के घर पर ना होने से पैदा हुई शांति उनके परेशान होने का
कारण ना बन जाए. ये एक आत्मघाती विस्फोट की तरह होता था जिसका detonation आपके लौटने के बाद आपके कारनामे और
फटी हुई शर्ट खुद करती थी. उफ्.. तब तो गला फाड़ फाड़ कर रोने में भी शर्म नहीं आती
थी.
मैंने
ऑंखें खोली. अब मेरे अन्दर कहीं जाने की जल्दी नहीं थी. कोई झुझलाहट नहीं थी. मैंने ऑफिस फ़ोन लगाया और अपने बहोत-बहोत बीमार होने
की बात बताई. लेकिन मैं बीमार नहीं हूँ. कुछ वक़्त चाहता हूँ. अपने लिए , बहोत सालों बाद. मैं इस सुबह की किरण को इस हवा को समेटना चाहता
हूँ जो शायद हमेशा से मेरे आसपास ही थीं. लेकिन उन्हें देखने की मैंने न कभी कोशिश
की और न ही ज़रुरत समझी. मुझे कुछ
पकोड़े बनाने हैं अपने लिए जिसे चाय की हर एक चुस्की के साथ एन्जॉय करना है. मुझे कुछ कॉल करने हैं, अपने पुराने दोस्तों को
जिन्हें मैं इस बड़े शेहेर की भागदौड़ में उस अमरुद के पेड़ पर छोड़ आया हूँ. कुछ चिट्ठियां लिखनी हैं उन खडूस अंकलों को
जिनकी खिड़कियाँ आज भी हमारी गेंदों की निशान संजोये हुए हैं. कुछ किशोर की चुलबुली
आवाज़ सुननी है, कुछ मुकेश के उफ़...
वो दर्द भरे नगमे गुनगुनाने हैं. कुछ पुराणी पिक्चर देखनी हैं. एक दिन इस newspaper का मजाक बनाना है, बिना खोले बड़ा सा
प्लेन बनाना है. आज थोडा कमज़ोर होना
है, उस आम के पेड़ से गिरना है. आज बेवजह रोना है, कुछ आंसू बहाने हैं. फिर बिना
किसी टेंशन के छत पर टेहेलना है और फिर आसमान को बेवजह घूरते हुए सो जाना है.
बहोत
कुछ करना है आज. वो सब जो शायद मैं करना भूल गया हूँ, जो हम करना भूल गए हैं. कुछ
ब्रेक अपने सपनों के पीछे भागने से लेते हैं और एक दिन अपने अन्दर के बचपन को देते
हैं.
Happy Children-in-everyone every-day
Left me speechless :) bas itna hi
ReplyDeleteRangoli k gaane, was a serious strike to memory, somewhere back of my mind its was super pleasing !!!
ReplyDeleteमैंने अपने अन्दर के भाई-देर-हो-रही-है वाले इंसान को थोडा आराम दिया और खिड़की की ओर बढ़ा...... Awesome line
ReplyDeleteand this one
Happy Children-in-everyone everyday....
Hats off tu u man :)
एक दिन इस newspaper का मजाक बनाना है, बिना खोले बड़ा सा प्लेन बनाना है. आज थोडा कमज़ोर होना है, उस आम के पेड़ से गिरना है. आज बेवजह रोना है, कुछ आंसू बहाने हैं. फिर बिना किसी टेंशन के छत पर टेहेलना है और फिर आरमान को बेवजह घूरते हुए सो जाना है...
ReplyDeleteBeautiful..
gadar... bilkul hatsoffff... :) :)
ReplyDeletemaja aa gaya yaar...spot on. This is what I always said that a blog should be effortless and yet intriguing. Loved it.
ReplyDeletewo Rangoli, Breadroll aur Chai bahut sahi likha hai, Bachpan ke din yaad aa gaye..........
ReplyDeleteVery Nice :)
Bhaiya phadu hai ye wala to aj fr se happy children day ho gya
ReplyDeleteMaza aa gya... Each and every line is linked with our childhood memories..
Dhamakedaar:-)
All d best bhaiya for your upcoming dynamic blog with some more interesting talks and stories...
Bhaiya phadu hai ye wala to aj fr se happy children day ho gya
ReplyDeleteMaza aa gya... Each and every line is linked with our childhood memories..
Dhamakedaar:-)
All d best bhaiya for your upcoming dynamic blog with some more interesting talks and stories...