आपको
लग सकता है की ये क्या है. सवाल तो कभी
ये था ही नहीं. सवाल तो हमारे बुजुर्ग हमेशा से ये पूछते आये हैं की पहले मुर्गी
आयी या अंडा. आपको लग सकता है की मैं पागल तो नहीं हो गया !! शायद हाँ , शायद ना.
बात ऐसा
है की मुझे बुजुर्गों वाले सवाल के जवाब से ज्यादा ख़ुशी मेरे इस सवाल के जवाब से
मिलती है. और आप ऐसा मत सोचिये की ये सवाल मुझसे किसी नेशनल इंस्टिट्यूट के
सेमीनार में पुछा गया था और उसके जवाब से मुझे नोबेल पुरस्कार मिलने वाला है, जो
मैं इतना खुश हो रहा हूँ. ये सवाल
तो मुझसे " तूफानी अंडा शॉप " के पप्पू भईया ने पुछा था. और मैंने बस
प्यार से उन्हें कहा था " आज Boiled में ही समेट दे भाई !! " .
आप
बिलकुल सही हैं. ना तो मैंने कुछ ऐतिहासिक काम किया है और ना ही कुछ ऐसा जिससे
मुझे इतनी ख़ुशी होनी चाहिए. लेकिन
फिर भी मैं खुश हूँ. खुश इसलिए भी
क्यूंकि इस वक़्त मुर्गी और अंडे के बीच सदियों से चल आरही लड़ाई में जीत किसी की भी
हो हमारे 'आज' पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मैं एक ऐसी ख़ुशी के लिए जिसके होने ना होने
की कोई गारेंटी भी नहीं के लिए अपनी छोटी सी ख़ुशी कुर्बान नहीं करना चाहता.
हम आज यही कर
रहें हैं ..बड़ी खुशियाँ , बड़ी महत्वकांक्षा के पीछे भागते हुए छोटी खुशिया, छोटी
ज़रूरतों पर हमारा ध्यान नहीं जाता. आपके लिए ये समझना बहोत ही ज़रूरी है की छोटे
पड़ाव उतने ही ज़रूरी हैं जिनती एक बड़ी मंजिल.
ये छोटी
छोटी खुशियों के पल हमारे लिए एक Atom के ऊपर एक छोटे से Photon energy pouch की तरह काम करती हैं. ऐसा एक छोटा सा pouch जो आपको stabilize भी कर
सकते हैं और destabilize भी. और अजीब बात ये है की इस stable state में पहोचने के लिए आपको किसी बड़े
एनर्जी पैकेट को पाकर ऊँचे लेवल पर जाने की भी ज़रुरत नहीं है. और अगर आप किसी ऊपर
के लेवल पर पहोच भी जाते हैं तो भी आपको उन खुशियों को बांधे रखने के लिए इन छोटी
छोटी खुशियों के photons को संजोये
रखना होगा.
आज बड़े
शहरों में बड़ी कंपनियों , MNCs के
बुद्धिजीवी हमारे इन महत्वकान्छओं को काफी अच्छी तरह आँका है और इसका इस्तेमाल
अपने फायदों के लिए हमारे ही खिलाफ किआ है. थोडा सा बोनस , थोड़े से तोहफे, थोड़े से वादों देकर वो हमसे ये छोटी छोटी
खुशियों की झोली मांग लेते हैं और हम भी इसे बड़ी आसानी से दे देते हैं. इस छोटी
झोली की बड़ी कीमत का अंदाज़ा हमें आगे चल कर होता है जब हम भीड़ में इतने आगे निकल
जाते हैं की वापस आना मुश्किल हो जाता है.
बड़ी खुशियों के पीछे जाना बुरा नहीं है, बल्कि समाज के evolution के लिए
ज़रूरी भी है. लेकिन इन छोटी खुशियों की कुर्बानी देकर नहीं. हम कहीं बड़े सवालों के जवाब की खोज में कहीं इतने व्यस्त ना हो जाएँ की
छोटे सवाल आपसे मुंह ही मोड़ लें.
अब ये
हमारे ऊपर है इस मुर्गी-अंडे के जवाब के वादे में क्या हम सामने रखे boiled egg और fried egg
के option को
ही खत्म कर देते हैं या मुर्गी को थोडा इंतज़ार करने को कह कर छोटी खुशियों को हज़म
की शाजिश में लग जाते हैं. सवाल और जवाब हमेशा से आपके सामने ही था और आगे भी
रहेगा , मुद्दा ये है की आप चुनते किसे हैं.
मैं भी
किन चक्करों में पड़ गया... पप्पू
यार !!! Boiled लगाया नहीं अभी तक....
Sacchii choti khushi searchin app. in a human body must b present.very inspiring.d way u linkd d whole stry of anda wid chti khushi was unexpected nd wud nvr strike to me ..on dis diwali u choose d right thought in writin .happy khushi happy festive season.
ReplyDeleteSacchii choti khushi searchin app. in a human body must b present.very inspiring.d way u linkd d whole stry of anda wid chti khushi was unexpected nd wud nvr strike to me ..on dis diwali u choose d right thought in writin .happy khushi happy festive season.
ReplyDeleteHappy vaccations sir .. :) nd d article delivers a butiful msg in disguise of boiled egg nd fried egg... :D (y)
ReplyDeleteHappy vaccations sir .. :) nd d article delivers a butiful msg in disguise of boiled egg nd fried egg... :D (y)
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