हर बार ज़िन्दगी हमसे आगे भागती है. बहुत तेज़. और हम उसका पीछा करते हैं. और कई बार हम इतनी तेज़ी से पीछा
करते हैं की हमें ये भ्रम हो जाता है की शायद हम इससे आगे भी निकल सकते हैं. लेकिन
ऐसा भ्रम हमें ज्यादा वक़्त तक नहीं रहता. ये एकदम आइंस्टीन
के थ्योरी जैसा है आप कितनी भी तेज भागिए आप लाइट की स्पीड से ज्यादा नहीं जा
सकते. वैसे ही जिंदगी भी कितनी भी स्पीड से भागने की कोशिश करे वो आकर कहीं ना
कहीं थम ही जाती है. और अगर ये ठहराव अचानक से आपके सामने आ जाती
है जिंदगी के नियम आँखों के सामने थोड़े धुंधले पड़ते से लगते हैं.
ऐसे
वक़्त में आपके सेंसेस स्थिर हो जाते हैं और आप किसी भी emotional चेंज को संभाल नहीं पाते. आप दुखी रहते हैं. चीखते हैं. सिसकते हैं.
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं.
या नहीं करते हैं.
लेकिन
फिर वक़्त बीतता है और आप खुद को सँभालते हैं. कोशिश करते हैं. रोकते हैं. अपने को मज़बूत करते हैं. अब आपकी इन्द्रियां अचेत अवस्था से जागती हैं और
आप उस अँधेरे, दम घोटते कमरे से बाहर की तरफ देखते हैं. लेकिन अब भी आप वो दरवाज़ा
खोलना नहीं चाहते. आप डरते हैं रोशनी से. उस सोच से जो बाहर है. उस अकेलेपन से, उस
कमी से जो अब तक उस उजाले को और भी प्रकाशमय बनाये हुए थी और अब जो वहां ना हो.
आप बाहर
देखते हैं और पाते हैं की वहां बाहर बहुत सी आँखें किसी की कमी बयां कर रही हैं.
सबके आंसू सूख चुके हैं, लेकिन अब भी वे बेजान हैं. लेकिन ये क्या !!! ये अब भी
कुछ ढूंढ रही हैं. इस बार ये ऑंखें उस खामोश रोशनी की तलाश नहीं कर रही हैं. ये
किसी और की तलाश कर रही हैं. शायद उसकी जिसने बहोत वक़्त से उस कमरे में खुद को बंद
कर रखा है. शायद उसकी जो उस घुटन भरे कमरे में रहने की आदत डाल रहा है. शायद आपकी.
अब बाहर
झांकने का नहीं निकलने का वक़्त आ गया है. लोगों की आँखों में भ्रम पैदा करने का
वक़्त आगया है. जिंदगी चलती रहनी चाहिए और उस चौथे पहिये का काम आ गया है.
आप बाहर आते
हैं और पाते हैं की जिंदगी किसी अँधेरे में गुमनाम, चुपचाप, असहाय और अस्थिर पड़े
रहना नहीं है बल्कि उस उजाले में है जो ना सिर्फ सूक्ष्म से बीज में जान डालती है
बल्कि आपको खुद को संभाल कर उस अँधेरे ज़मीन से बाहर निकालने की हिम्मत भी देती है.
आप अगली
सुबह जागते हैं और रोशनी को देखते हैं. आपमें बहोत एनर्जी है लेकिन अब आप बहोत उत्तेजित नहीं होते उसे देखकर.
आपको पता है आप क्षितिज को छू नहीं सकते और अब आप छूने की कोशिश भी नहीं करते.
लेकिन आप उसकी तरफ अपने क़दमों को नहीं रोकते. आप उसकी तरफ जाते रास्ते पर सफ़र करने
को तैयार हैं. अब आपको पता है की
जिंदगी किसी जगह पहोचन नहीं बल्कि एक सफ़र है. सफ़र एक ऐसे रास्ते पर जहाँ आपको
दोनों extremes के बीच से अपनी गाडी
निकालनी है. आप उस गाडी के सारे पुर्जों को एक बार फिर चेक करते हैं और एक नए,
बिलकुल नए सफ़र पर निकल पड़ते हैं...
ps. Rest in peace ...you !