Wing Up

Wing Up
●●●

Thursday, 14 November 2013

नयी फटी शर्ट

रोज़ की तरह आज भी सुबह 6 बजे अलार्म की आवाज़ ने मुर्गे का काम आसान करते हुए मुझे हौले से जगाया. हाँ सच में. और कसम से गुस्सा तो मुझे आया ही नहीं. आता भी क्यूँ रोज़ का काम है उस बेचारे का. मैं बस उठा और "बहोत ही अच्छे मन से" बाथरूम की ओर तेज़ी से बढ़ा. मुझे अगर कोई सुबह सुबह बाथरूम की ओर भागता देख लेता तो उसे कारगिल पर सीमा की ओर भागते सैनिक की याद ज़रूर आ जाती.

लेकिन आज कुछ अलग हुआ. मैं बाथरूम तक नहीं पंहुच पाया. मेरे कदम बाहर से आ रही एक छोटी सी किरण ने रोक दी. एक छोटी सी रौशनी जो खिड़की के कोने से सीधे मेरे table पर आरही थी. मैंने अपने अन्दर के भाई-देर-हो-रही-है वाले इंसान को थोडा आराम दिया और खिड़की की ओर बढ़ा. खिड़की खुलते ही एक ठंढा सा हवा का झोंका मेरे चेहरे पर  पड़ा. ना बहोत खुश्क और ना ही नम, एकदम नपा तुला, सौंधी महक लिए वो ठंढा झोंका जो सूरज की चमक और गर्मी में मिलकर एक अलग सा एह्साह दे रहा था, सीधे मेरे चेहरे पर पड़ रहा था. मैंने आँखें बंद की और उस नए से एहसास  से खुद को वाकिफ कराने लगा.

लेकिन एक मिनट ....ये एहसास, ये सुकून, ये हवा कुछ जानी पहचानी सी लगी... कुछ अपनापन लिए.. किसी पुराने दोस्त की तरह. एक ऐसा एहसास जिसकी आगोश में आकर कोई परेशानी, कोई मुश्किल बस एक अफवाह से ज्यादा होने की जुर्रत नहीं करते. मेरे कानों में एक आवाज़ पड़ी - 'भाई !!! जल्दी उठ, सन्डे हैं, सात बज गए हैं, "रंगोली" के गाने छोड़ने का सोचा है क्या.' मेरी आँख एक ही आवाज़ में खुली और दो मिनट से कम वक़्त में मैं टीवी के सामने आँख फाड़े बैठा था. और पांच मिनट में मेरे सामने मेरे-सन्डे स्पेशल ब्रेड रोल और चाय थे. और पीछे से चिल्लाती माँ की आवाज़ " ठंड शुरू हो गई है कम्बल में घुसो ". उस कम्बल की गर्मी में calories और cholesterol वाले ब्रेड रोल का लुत्फ़, किशोर और मुकेश के पुराने गाने सुनते हुए लेने के बाद बारी थी सारे गमलों को पानी देने की. विश्वास करिए उन गमलों में रोबिन-हुड से लेकर गुलिवर तक की कहानियों के सेट बन चुके होते थे. ये कहानियां तब तक चलती रहतीं जबतक रोबिन-हुड और गुलिवर के बीच झगडे न शुरू हो जाते और माँ उनकी जगह हमारे पीछे झाड़ू लेकर भागती नज़र ना आने लगतीं. वैसे ये हाल कैरेम और लूडो के घंटों चलते matches के बाद भी देखने को मिल जाते थे जब नियम बनाते भी हम ही थे और तोड़ते भी. मोहल्ले में हो रहे क्रिकेट टूर्नामेंट में आप तभी जा सकते थे जब माँ किसी काम में इतनी व्यस्त हों की आप के घर पर ना होने से पैदा हुई शांति उनके परेशान होने का कारण ना बन जाए. ये एक आत्मघाती विस्फोट की तरह होता था जिसका detonation आपके लौटने के बाद आपके कारनामे और फटी हुई शर्ट खुद करती थी. उफ्.. तब तो गला फाड़ फाड़ कर रोने में भी शर्म नहीं आती थी.


मैंने ऑंखें खोली. अब मेरे अन्दर कहीं जाने की जल्दी नहीं थी. कोई झुझलाहट नहीं थी. मैंने ऑफिस फ़ोन लगाया और अपने बहोत-बहोत बीमार होने की बात बताई. लेकिन मैं बीमार नहीं हूँ. कुछ वक़्त चाहता हूँ. अपने लिए , बहोत सालों बाद. मैं इस सुबह की किरण को इस हवा को समेटना चाहता हूँ जो शायद हमेशा से मेरे आसपास ही थीं. लेकिन उन्हें देखने की मैंने न कभी कोशिश की और न ही ज़रुरत समझी. मुझे कुछ पकोड़े बनाने हैं अपने लिए जिसे चाय की हर एक चुस्की के साथ एन्जॉय करना है. मुझे कुछ कॉल करने हैं, अपने पुराने दोस्तों को जिन्हें मैं इस बड़े शेहेर की भागदौड़ में उस अमरुद के पेड़ पर छोड़ आया हूँ. कुछ चिट्ठियां लिखनी हैं उन खडूस अंकलों को जिनकी खिड़कियाँ आज भी हमारी गेंदों की निशान संजोये हुए हैं. कुछ किशोर की चुलबुली आवाज़ सुननी है, कुछ मुकेश के उफ़... वो दर्द भरे नगमे गुनगुनाने हैं. कुछ पुराणी पिक्चर देखनी हैं. एक दिन इस newspaper का मजाक बनाना है, बिना खोले बड़ा सा प्लेन बनाना है. आज थोडा कमज़ोर होना है, उस आम के पेड़ से गिरना है. आज बेवजह रोना है, कुछ आंसू बहाने हैं. फिर बिना किसी टेंशन के छत पर टेहेलना है और फिर आसमान को बेवजह घूरते हुए सो जाना है.


बहोत कुछ करना है आज. वो सब जो शायद मैं करना भूल गया हूँ, जो हम करना भूल गए हैं. कुछ ब्रेक अपने सपनों के पीछे भागने से लेते हैं और एक दिन अपने अन्दर के बचपन को देते हैं.


Happy Children-in-everyone every-day

Tuesday, 5 November 2013

उफ्फ्फ...तुम्हारे Opinions !

अपूर्व को इंडिया पाकिस्तान के मैच के बाद इतना गाली देते हुए आज देख रहा हूँ। मैंने उसे कहा भी की भईया इतनी बड़ी बात भी क्या हो गई। कौन सी दुनिया उजड़ गई आपकी। एक जीन्स ही तो है जो दूकानदार ने खराब दे दी है। इतना क्या स्यापा पाना इसपर। उसने जिस तरह से मुझे देखा मुझे अन्दर से महसूस हुआ की अगर बन्दे को इस वक़्त एक straw मिल जाता तो वो पक्का मेरा खून ही पी जाता। और उस दिन लगभग सारे हॉस्टल को ये बात पता चल गई की Levi's की जीन्स अगर बुरी नहीं है तो अच्छी भी नहीं है। इस तरह से एक बन्दे के सिर्फ एक जीन्स पर एक छोटी सी opinion की वजह से , ये कुछ सौ लोगों के दिमाग में levi's store में कदम रखने से पहले एक बार घंटी तो ज़रूर बजेगी।

ये सिर्फ एक जीन्स की बात नहीं है। जिंदगी की हर छोटी चीज़ जो हमसे जुडी है हम उसपर जाने अनजाने एक opinion ज़रूर बनाते हैं। और न सिर्फ ये opinion बनाते हैं बल्कि अपने आसपास के लोगों के साथ अपने विचार और experiences भी बाँटते हैं।

हम dominoes गए। वहां का खाना अच्छा या बुरा। हम अपना opinion रखते हैं।
कोई नया mall खुला शहर में। पिछले वाले से उसका comparison । हम अपना opinion रखते हैं।
मैंने नया samsung फोन लिया। बहोत गर्म होजाता है। कुह अच्छे features भी हैं। हम अपना opinion रखते हैं।
एक नयी फिल्म देखी। गाने कुछ ज्यादा ही थे। हम अपना opinion रखते हैं।

इंसानों का एक basic और अनुवांशिक nature होता है opinion बनाना। और न सिर्फ बनाना बल्कि उसे दूसरों के सामने express करना। और ये शर्मिंदा होने की बात नहीं है। बल्कि ये तो प्रमाण है की आप इंसान हैं।
ये ही opinions जब एक समूह में लिए और बनाये जाते हैं तो ये trend का रूप ले लेती है और फिर ना ही सिर्फ social बल्कि commercial और economical रूप से वर्चस्व बनाये हुए organisations को भी अपने सबसे सूक्ष्म और बेसिक समूह के हित में काम करने को मजबूर कर देती है। और आपको जानकर थोडा आश्चर्य हो सकता है लेकिन ये सूक्ष्म और बेसिक समूह कोई और नहीं हम खुद हैं।

यही वजह है की आम लोगों के opinion बनाने से बहोत से "लोगों" को डर लगता है। ये वो लोग हैं जो market में पकड़ बना चुके होते हैं और व्यावहारिक स्तर पर profit कमाना ही जिनका उद्देश्य रह गया है। और अब इन्हें अपनी गिरती value की वजह से अपने सर्विस और कीमतों में सुधार लाना होगा जिससे अंत में फायदा उस सूक्ष्म समूह को ही होगा जो हमसे बनती है।

इसीलिए opinions या तो अच्छे हों या बुरे। मीठे हों या कडवे। आप उसपर ban या रोक नहीं लगा सकते। और अगर आप या कोई राजनितिक पार्टी ऐसा करने की कोशिश करते हैं तो दो ही बातें हो सकती हैं।

1) या तो आप उस निचले और सूक्ष्म स्तर, जो की हम आम आदमी हैं, की कोई चिंता नहीं करते।
2) या आप डर गए हैं।

इसलिए अपनी बात रखिये और इंसान होने का प्रमाण दीजिये। एक ऐसा इन्सान जो ना सिर्फ जगा है बल्कि चौकन्ना भी है। जो सिर्फ विचार बनाता नहीं बल्कि उसको व्यक्त करने का साहस और हुनर दोनों रखता है। ऐसा इंसान जो अपने पूर्वजों से एक कदम आगे रहा है। जो evolution की सीढ़ी में आगे जाने को तैयार है। हम और आप। फैसला कोई भी हो.. आप अपना opinion देंगे... और उसी का मुझे इंतज़ार भी रहेगा हमेशा की तरह।